कशमकश के दौर में कई बार उठे फिर गिरे
यूं सोच हर बार कि आगे बढ़ना तो होगा ही
मेरे जुनून की हद यहां ना रुकेगी कभी
कहने वाले के पास भी मेरी ही बातें होगी
कर्मठ उत्तेजित इस मन को अब ना रुकने देंगे
इस जुनून की बारिश को अब ना थमने देंगे
जलती इस चिंगारी में लाख जले तो जल जाए
बात स्वाभिमान की फिर जो अब ठानी है
ना अब कोई डर ना अब कोई सिशक होगी
इस कर्मठ मन की सारी अभिलाषा पूरी होगी
सोच जरा जड़चेतन तू, यूं निरुदेश नहीं
सोच जरा एक बार सही खुद से ही बेमानी क्यों
बात ठहरी स्वाभिमान की तो सिर्फ तेरी ही बारी होगी
Written By Mitali rohit vashistha