आंख खुली तब आज़ाद थी,, आज़ादी में ज़ंजीरें क्यों,,
मेरे भी कुछ सपने थे,, बेदर्दी से दफनाए क्यों,,
लिखना पढ़ना हक मेरा,, मेरे अपने पूछे क्यों,,
देख उजाला जाग उठी,, अंधेरा फिर छाया क्यों,,
अब चलना है मुझको आगे,, हर कदम पे अड़चन क्यों,,
ढूढ़ रही खुदको मै,, बंद तेरा दरवाज़ा क्यों,,
डर से घूंघट को लेकर,,सोच पे परदा डाले क्यों,,
मन करता है पूछे खुद से,, आख़िर सबसे पीछे क्यों,,
मन था ज़िंदा रहने का,, डूबना मुझको आया क्यों,,
अरमा जागे पूछे मुझसे, हरपल तुझपे साया क्यों,,
कोख मेरी से आया था,, फिर मुझपर ही तेरा वार है क्यों,,
ममता से पाला था तुझको,, मुझको ही ठुकराया क्यों,,
तू तो रक्षक ता मेरा,, शिकार मेरा ही करता क्यों,,
जब चाहे मन बेहलाए,,ऐसा ही ये रिश्ता क्यों,,
छीनु अब सब हक अपने,, पूछूं तूने छीना क्यों,,
चलती थी तेरे बल से, चलूं ना अब अपने आप क्यों,,
Written By Mitali rohit vashistha