ख़फ़ा-ख़फ़ा से मुझसे, अब लोग रहने लगे।
मैं ऐसा हूं, मैं वैसा हूं, सब कहने लगे||
झूठी बुनियाद पर टिके थे, जो कुछ रिश्ते।
एक-एक कर, सब के सब, अब ढहने लगे||
नजरे मोड़कर चुपके से, मुझसे जो छुपने लगे |
उनको खबर नहीं, रास्तें ज़िन्दगी के फिर मुड़ने लगे||
ख़फ़ा-ख़फ़ा से मुझसे, अब लोग रहने लगे।
मैं ऐसा हूं, मैं वैसा हूं, सब कहने लगे||
फ़िर नई ख़ुशियाँ, नए लोग मिलने लगे।
वक़्त के साथ नए सपने बुनने लगे||
फ़िर कुछ अपनापन-सा लगने लगा।
जिंदगी जीने की कोशिश मैं करने लगा||
मैं ऐसा हूं, मैं वैसा हूं, सब कहने लगे||
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